Sunday 19 August 2012

जीवन में अगर मुसीबत

जै श्री गणेश 

जीवन में अगर मुसीबत , परेसानी , कष्ट से बाहर नहीं निकल पा रहे है तो अमावस्या के दिन पीपल को जल देते हुए यह मंत्र को जपे "औं सर्वाय  नमः "

जरुर ही लाभ होगा |

 राधे राधे 

Friday 10 August 2012

इन्हें भी आजमाए

सड़क पर जाती हुइ किसी भी लाल गाडी को देखकर ताली बजाइए तो जरुर मिठाई खाने को  मिलेगी ।









  1. अगर बहुत दिन से बेरोजगार है काम की तलाश में है नौकरी नहीं मिलती तो एक अद्भुत  प्रयोग करिए शनिवार को 8   मिटटी के दीप में सरसों (राई) के  तेल का दीपक पीपल के वृछ (पेंड) के  पास जलाये | और गुरूवार को देशी घी का दीप जलाए तो अतिशीघ्र बेरोजगारी की समस्या से निजात मिल जाएगी |   

Monday 30 July 2012

Thursday 1 December 2011

कुछ व्यावहारिक बाते

जय श्री राधे 


आप सभी को एक बार फिर से स्नेह और राधे राधे

तथा आप को बता दू कि जो कुछ व्यवहार मनुष्य करता है परदे के सामने वह कैसे करता है यह बहुत ही गंभीर
समस्या हमारे समाज के लिए बनती जा रही है|
मै  कहता हूँ कि इस संसार में कुछ भी करले लेकिन आखिर कर जाना तो सब छोड़ कर ही है न
तो   क्यों इतनी भागेदारी समझाना चाहिए |

हमें सब से कम साधन के साथ जिवें यापन करना चाहिए और प्रयत्न करके मन कि सभी कारको से बचना
चाहिए | क्यूंकि श्री रामचरित मानस में कुछ एक दोहा है जो मानस के विभिन्न रोग का वर्णन करती है |


जो मै आप को विस्तृत रूप में बताऊंगा |



धन्यवाद

Friday 19 August 2011

Success

Success, Ak nasha hota hai, jisko jis kisi vastu ya man ki bhavna ka lobh chadhta hai o sab kuchh khokar bhi apna goal pane ki koshis karta hai. kabhi kabhi apna nishchit gantavya pane k chakkar me insan aur bahut kuchh kho deta hai. jab o pa jata hai tab lagta hai bus yahi pane k liye maine jeevan me kya nahi khoya? Kahna bus itna hai ki b carefull kahi ak pane k chakkar me aap jeevan ki khushiyan hi na kho de.

पुराण क्या है ?


परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीड़नम्। अष्टादश पुराणानि व्यासस्य वचन।।
अर्थात्, व्यास मुनि ने अठारह पुराणों में दो ही बातें मुख्यत: कही हैं, परोपकार करना संसार का सबसे बड़ा पुण्य है और किसी को पीड़ा पहुँचाना सबसे बड़ा पाप है। जहाँ तक शिव पुराण का संबंध है, इसमें भगवान् शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं। सभी पुराणों में शिव पुराण को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होने का दर्जा प्राप्त है। इसमें भगवान् शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है।

पुराण क्या है ?

सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्मा ने सर्वप्रथम स्वयं जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की, उसे पुराण के नाम से जाना जाता है। इस धर्मग्रंथ में लगभग एक अरब श्लोक हैं। यह बृहत् धर्मग्रंथ पुराण, देवलोक में आज भी मौजूद है। मानवता के हितार्थ महान संत कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने एक अरब श्लोकों वाले इस बृहत् पुराण को केवल चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया। इसके बाद उन्होंने एक बार फिर इस पुराण को अठारह खण्डों में विभक्त किया, जिन्हें अठारह पुराणों के रूप में जाना जाता है। ये पुराण इस प्रकार हैं 
:1. ब्रह्म पुराण
2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. शिव पुराण
5. भागवत पुराण
6. भविष्य पुराण
7. नारद पुराण
8. मार्कण्डेय पुराण
9. अग्नि पुराण
10. ब्रह्मवैवर्त पुराण
11. लिंग पुराण
12. वराह पुराण
13. स्कंद पुराण
14. वामन पुराण
15. कूर्म पुराण
16. मत्स्य पुराण
17. गरुड़ पुराण
18. ब्रह्माण्ड पुराण

पुराण शब्द का शाब्दिक अर्थ है पुराना, लेकिन प्राचीनतम होने के बाद भी पुराण और उनकी शिक्षाएँ पुरानी नहीं हुई हैं, बल्कि आज के सन्दर्भ में उनका महत्त्व और बढ़ गया है। ये पुराण श्वांस के रूप में मनुष्य की जीवन-धड़कन बन गए हैं। ये शाश्वत हैं, सत्य हैं और धर्म हैं। मनुष्य जीवन इन्हीं पुराणों पर आधारित है।

पुराण प्राचीनतम धर्मग्रंथ होने के साथ-साथ ज्ञान, विवेक, बुद्धि और दिव्य प्रकाश का खज़ाना हैं। इनमें हमें प्राचीनतम् धर्म, चिंतन, इतिहास, समाज शास्त्र, राजनीति और अन्य अनेक विषयों का विस्तृत विवेचन पढ़ने को मिलता है। इनमें ब्रह्माण्ड (सर्ग) की रचना, क्रमिक विनाश और पुनर्रचना (प्रतिसर्ग), अनेक युगों (मन्वन्तर), सूर्य वंश और चन्द्र वंश का इतिहास और वंशावली का विशद वर्णन मिलता है। ये पुराण के साथ बदलते जीवन की विभिन्न अवस्थाओं व पक्षों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं जो वैदिक सभ्यता और सनातन धर्म को प्रदीप्त करते हैं। ये हमारी जीवनशैली और विचारधारा पर भी विशेष प्रभाव डालते हैं। गागर में सागर भर देना अच्छे रचनाकार की पहचान होती है। किसी रचनाकार ने अठारह पुराणों के सार को एक ही श्लोक में व्यक्त कर दिया गया है: